गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009

य़ूपी भर के पत्रकारों के नंबर हमारे पास

यूपी के पत्रकारों की मीडिया डायरेक्टरी का विमोचन

सिद्धार्थ कलहंस

लखनऊ
उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा प्रदेश है। सबसे ज्यादा सांसद यहीं से चुने जाते हैं सो खास तो है ये यूपी। अब यहां के सबसे बड़े पत्रकार संगठन यूपी वर्किंग जर्निल्स्ट यूनियन ने पत्रकारों के प्रदेश भर के सभी जिलों से फोन नंबर ले एक डायरेक्टरी छापी है। इसका महत्व इस लिए बढ़ गया है क्योंकि पहली बार सरकार की अपनी डायरी में पत्रकारों के नाम गायब कर दिए गए हैं। चुनाव के साल में बड़ी जरुरत थी पत्रकारों के नंबर पर अफसोस आजादी के बाद पहली बार सरकार ने मान्यता प्राप्त पत्रकारों के नंबर भी नही छापे। खैर यूपी यूनियन के अध्यक्ष हसीब भाई ने मेहनत कर जिलों - जिलों से पत्रकारों के नंबर जुटाए, राजनेताओं के नंबर लिए और प्रमुख अधिकरियों के नंबर जुटा उन्हें छापा। वो बधाई के पात्र हैं। तो साथियों यूपी के प्रेस जगत से जुड़े हर नंबर, हर जिले के,राजनेताओं के, मंत्री, सांसद, विधायक के और महत्व के लोगों के सब जानकारी मिलेगी इसी डायरेक्टरी में। यूनियन का खर्च ज्यादा हो गया और डायरेक्टरी 160 पन्ने की मोटी सो दाम रख दिया है 60 रुपए। मिलेगी यूपी प्रेस क्लब में, लखनऊ में दारुलशफा में, यूनिवर्सल में और बहुत से जिलों में भी। वैसे भी मंगाना हो तो फोन पर मांगे (0522)2616520 पर
सहयोग मिलेगा ये आशा है।

बुधवार, 25 फ़रवरी 2009

एक हैं डॉ वजाहत रिजवी

एक हैं डॉ वजाहत रिजवी
सिद्धार्थ कलहंस
दो दिन पहले यशवंत के भड़ास फॉर मीडिया पर पढ़ा डॉ िरजवी को उत्तर प्ररदेश कर्मचारी सहित्य परिषद का गालिब पुरस्कार पाने की खबर। खबर थोड़ी पुरानी जरुर थी पर सम्मान तो सम्मान है और वो भी रिजवी साहब को। उत्तर प्रदेश के मुखिय के मीडिया सेंटर के प्रभारी हैं कई साल से। वहीं कई साल पहले का परिचय है। देखता था राज्य के हेडक्वार्टर पर मान्यता प्रराप्त पत्र्रकार अक्सर जब नारज होत तो अपनी कुंठा उन पर ही निकल दिया करते थे। रिजवी साहब चुपचाप सब सुनते थे। और मुस्कराते रहते थे। सबकी शिकायत का निवारण करते रहते थे। पत्र्रकारों की हर शिकायत को आज भी बदस्तूर सुनते हैं और जो भी बन पड़े करते रहते हैं। उनकी लेखन की प्रतिभा के बारे में ज्यादा पता नही था। एक बार किसी ने बताया था कि सरकारी ऊर्दू पत्रिका नया दौर का संपादन भी वो करते हैं। बहुत बाद में एक बार उसी पत्र्रिका का 1857 पर विशेष अंक निकला उसकी समीक्षा पढ़ी इंडियन एक्सप्रेस में तब वाकिफ हुआ उनके काम से। पहले जो बात दिमाग में आई वो ये कि दिन भर की मशक्कत के बाद कहां से समय निकाल लेते हैं। जिज्ञासा थी इस लिए एक बार पूंछा भी। मुस्करा के बोले सब हो जाता है। शौक है तो लिखने का समय भी निकाल लेते हैं। राज्य सरकार ने उनकी प्रतिभा का सम्मान किया खुशी हुयी। उम्मीद है कि वो अपने लिखने के काम को जारी रखेंगे।

शनिवार, 21 फ़रवरी 2009

आजादी का एक और सिपाही नही रहा, देह दान की

तिवारी नही रहे। आज ही अखबार में खबर पढ़ी,कोई साथी एेसा नही जो मरने के तुरंत बाद ही यह खबर देता। मेरा नाता उनसे बहुत कम था। जो था वो यह कि देश के जाने माने पत्रकार अंबरीष कुमार एक लखनऊ यूनिवसिर्टी थिंकर्स काउंसिल बना गए थे जिसमें तिलक छात्रावास में रहने वाले अपने सीनियर राजेंद्र तिवारी मुझे घसीट ले गए थे। चंद्र दत्त तिवारी घनघोर गांधीवादी, आजादी के सिपाही और लोहिया के साथी थे। हम लोग जो छात्र थे उन्हें भी उनका स्नेह मिलता रहता था और हम लोग उन्हे अपनी हर गोष्ठी में घसीट लाते थे। एक कोचिंग चलाने वाले राजीव जी तो हमारे संरक्षक जैसे थे और चंद्रदत्त जी उनके जीवन के खास अंग थे। राजीव जी ने हमें भी बहुत पोसा। पत्रकारिता जगत के कई बड़े नाम जैसे अंबरीष, नवीन जोशी, हरजिंदर, राजेंद्र तिवारी (आजकल भास्कर के स्थानीय संपादक), अमिताभ, प्रमोद जोशी, शिक्षक प्रमोद कुमार और भी कई सारे उन्हीं के स्कूल से निकले। लखनऊ में डीएवी, लखनऊ मॉंटेसरी, बालिका विद्यालय जैसे कई संस्थानों का संचालन उनके हाथों हुआ।पेपर मिल कालोनी के उनके अदना से मकान को देख कर कोई सोच भी नही सकता था िक कौन है यह आदमी। चंद्रशेखर जी को वह जब चाहे बुला लेते थे और कई बड़े नेता तो उनसे मिलने में गर्व महसूस करते। सरल थे। जिंदगी भर कुंवारे रहे। हम जैसे भी जाते तो खुद चाय बना पिलाते। मरते मरते देह मेडिकल कालेज को दान कर गये।

जब मैं पॉयनियर में चीफ रिपोर्टर था तो मेरे संपादक उदय सिन्हा ने एक बार मुझसे चंद्रदत्त जी का इंटरव्यू लेने को कहा और मैं गया। रात में मिल पाया खूब बात हुई और मैं तब कुंवारा था। चलते समय पूंछा खाना कहां खाओगे। जैसे ही मैंने कहा कि कमरे पर बना लूंगा चंद्रदत्ता जी ने वहीं रोक लिया और मैनें उनके हाथ की खिचड़ी खाई। मैं उन दिनो पॉयनियर में जूनियर था पहली बार मेरे जैसे की खबर एजेंडा नाम के साप्ताहिक परिशिष्टमें छपी। बहुत बाद में एक बार उदय जी के घर दीवाली महफिल में पूंछा िक क्यों मुझसे ही लिखवाया तो जवाब था कि अंग्रेजी के लोग कहां समझते हैं इन लोगों को।चंद्रदत्त तिवारी से आखिरी बार मुलाकात लखनऊ मॉंटेसरी एक फंक्शन में हुई। बीमार थे सो ज्यादा बोल नही पा रहे थे पर पुरानी जान पहचान थी सो काफी कुछ बोले। पत्रकारितासे नाराज थे, कहा केवल अंबरीष, एक्सप्रेस और इतवार को आने वाला नई दुनिया ही लिख पा रहा है सरकार के खिलाफ। जान कर खुश हुए िक मैं नई दुनिया के लखनऊ के प्रभारी योगेश मिश्रा को जानता हूं। नंबर लिया योगेश जी का, पता नही बात की या नही। मुझसे कहा कि कहां इंडियन एक्सप्रेस छोड़ बिजनेस स्टैंडर्ड में चला गया। पापी पेट का हवाला देने पर कहा कि इससे अच्छा तो बदरपुर से आने वाली गिट्टी बेंचो। आज नही रहे चंद्रदत्त जी तो यह सोचता हूं कि बच्चे को किस के बारें में बताउंगा िक इनने आजादी की लड़ाई लड़ी। कि ये दुर्गा भाभी के साथी रहे थे। क्या होगा लखनऊ मॉंटेसरी का। डीएवी तो पहले ही गर्त में जा चुका है। पर भरोसा है िक भाई देवेंद्र उपाध्याय जो अब सरकार के स्थाई अधिवक्ता हैं , साथी रमन पंत, राजीव जी, राजेंद्र, मसूद, और सबसे आगे अंबरीष जी उनके सपनों को मरने नही देंगे। न जाने क्ंयो अपने आखिरी दिनों में चंद्रदत्त जी कहते थे कि राहुल गांधी को देश का प्रधानमंत्री होना चाहिए। बड़ें कमिटमेंट के साथ कहते यह सब। न जाने राहुल में उन्हें क्या दिख रहा था। राज तो दफन हो गया न उनके साथ। लखनऊ िवश्वविद्यालय के प्रमोद कुमार जी से बात करने पर शायद कुछ पता चले।बस अब काफीसलाम चंद्रदत्त जी कोसागर थे वो और हम घड़े, और घड़े में घड़े जितना ही समाया

सिद्धार्थ कलहंस
लखनऊ