बुधवार, 13 मई 2009

हम शर्मिदां है, तेरे कातिल जिंदा हैं।

सिद्धार्थ कलहंस



मैं एक उदास, उनींदे और सुस्त से शहर बलरामपुर में दर्जा 5 में पढ़ता था जब एक दिन हमारे चचेरे चाचा हुकुम सिंह, जिन्हें हम बच्चे जालिम से कम न समझते थे, किसी एनजीओ की कि्वज प्रतियोगिता मे भाग दिलाने ले गए।घंटो के इंतजार के बाद एक सीलन भरे कमरे में जमीन पर बैठा कर कुछ सादे पन्ने दे दिए गए और साथ में कुछ निहायत ही आसान से सवाल। सवालों में से एक था, बागों का शहर किसे कहते हैं। मैंने दिमाग लगाया और लिखा लखनऊ।लखनऊ में मेरी बुआ रहती थीं। अब मरहूम। अक्सर आते थे हम लोग। मोहल्लों के नाम सुनते थे। डालीबाग, कैसरबाग, बंदरियाबाग, फूलबाग और जाने कितने बाग। कभी पूंछा किसी से तो पता चला ये बागों का शहर है। हर मोहल्ला बागों के नाम से मशहूर है।
अखबार की दुनिया में आने के बाद कुछ नए और अच्छे दोस्त बने तो उनमें से एक अजीज रवि भट्ट से एक दिन इसी मुद्दे पर ही बात की। बोले हां यहां के बाग दुनिया भर में मशहूर थे। उदास थे वो कि बाग कहां हैं अब। मैने कहा कि सरकार ने एलान किया है लखनऊ में एक लाख पेड़ लगाए जाएंगे। फिर क्यों स्यापा कर रहे हैं। एक और साथी ने कहा बीती मुलायम सरकार में तो पेंड़ लगाने का रिकार्ड बना था एक दिन में। कहां हैं वो पेंड़।बात वाजिब लगी। सो हमने भी पता करने की सोची कि कहां हैं हमारे दरख्त जो कभी लखनऊ की शान थे। न तो इस पर खबर लिखनी थी न ही कोई एसाइनमेंट था। सो खरामा-खरामा देखा। सूरते हाल कुछ यों निकले

राजधानी में बीते एक साल में 43000 पेड़ शहर को सुंदर बनाने के नाम पर काट डाले गए। शहर की सड़कों के किनारे फुटपाथ पर छायादार पेंड़ों को काट दिया गया। वजह इंटरलाकिंग ईंटो का फुटपाथ जो बनाना था। कानपुर रोड से शहर को तुरंत जोड़ देने वाली वीवीआईपी रोड पर 4786 पेंड़ काटे गए। वहां बुद्ध विहार बनना थाकल ही राजधानी में जिला जेल के हाते में लगे 1000 पेड़ों को काटने का फरमान निकला। इस पोस्ट को लिखने तक कोई 400 पेंड़ कट के जमींदोज हो गए।तहजीब के इस शहर में कोई न निकला इन बेजुबान पेंड़ों को बचाने को। पेंड़ बेजुबान थे। सो उनको कौन पूंछता। कटे। गिरे। कमीने ठेकेदारों के हाथों बिके।नीम के पेड़, अर्जुन के पेड़ और प्लाश के पेड़ कटे। लकड़ियां कौड़ी के भाव बिकीं। पयार्वरण के नाम पर दुकान चलाने वालों ने टस से मस न की।एक भी जनहित याचिका न दाखिल की गयी इस पूरे मामले पर। और हत है प्रदेश की जनता जहां एसों को भी वोट दिए जा रहे हैं।पेड़ जमीन पर हैं। अपनी कुरबानी का सबब पूंछते हैं।हमारा जवाब है। हम तो बस शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं।

बुधवार, 6 मई 2009

मारो हाथ बिरयानी मां


मारो हाथ बिरयानी मां
सिद्धार्थ कलहंस
नेता लोगे घूमे लागे अपन-अपन जजमानी मां

उठो काहिलों छोड़ो खिचड़ी मारो हाथ बिरयानी मां।


दिल्ली प्रदेश के एक बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी ने 4 कुंतल बिरयानी बनवा कर वोटरों को खिला डाली। इसी पार्टी के उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले के प्रत्याशी रिजवान जहीर के लिए काम कर रहे लोगों के दिन के मेन्यू में बिरयानी और शाम को सालन के साथ रोटी परोसी गयी। मेरठ में तो कई दलों के लोगों ने बिरयानी जम के खिलाई। खबर है कि बाटी चोखे पर संतोष कर लेने वाले पूवार्चंल के लोगों ने भी इस बार बिरयानी को तरजीह दी और दामी प्रत्याशी इसका इंतजाम करते देखे गए। सो बकरे की अम्मां ने चुनाव भर खैर मनाना ही बंद कर दिया। मनाती भी तो कब तक हर रोज हर मिनट कटना था।
अब लखनऊ के लोग परेशान हैं कि यहां बिरयानी ही नही बंटी। सभी बड़े प्रत्याशी वैष्णव जो ठहरे। हां मतदान के पहले एक दल विशेष के प्रत्याशी की ओर से सब्जी लाने के काम आ सकने वाले झोले में सहेली और रंगबाज ब्रांड के दो देशी शराब के क्वार्टर हर गरीब मतदाता को जरुर बांटे गए। यहां मौके को भांप आखिर दिन बिरयानी परोसी गयी पर केवल कुशलता से चुनाव में लगने वालों को।
मौलानाओं ने राजधानी लखनऊ में ही प्रेस वार्ता कर सारे मुसलमानों का एजेंडा तय करने का काम किया। 50 से ज्यादा मौलाना इस काम में जुटे। एक अखबार खबर देता है और खुद मुसलमान कहते हैं कि 10 लाख से 5000 तक पर मौलाना बिके और कुछ तो पंड़वे (भैंस का नवजात) की बिरयानी पर ही बिक गए।
मौके को भुनाने में चौथे खंभे के लोग कहां पीछे रहते। हालांकि इस बार उनके चेहरे पर थोड़ा उदासी थी। ज्यादातर जगहों पर मालिकान देश में लोकतंत्र कायम रखने का सौदा पहले ही कर चुके थे। सो बेचारे संवाददाता अधेले पर टूटे। कुशल नेताओं ने उनके दाम अलग-अलग लगाए पर भाव किसी को नही दिया।
लोकतंत्र के इस महाकुंभ में में 45 दिन जनता जनार्दन के नाम रहे। मंहगी गाड़ी में घूमने वाले दरवाजे-दरवाजे पसीना बहाते नजर आए। गांवों में तो खूब तंज भी सहे। कहीं ताली तो कहीं गाली मिली। हां अपने आरामगाह मे जाकर उनने सबको गाली ही सुनायी। और ये भी कहा कि जीतने पर हिसाब बराबर कर दूंगा। पर क्या करें वोट का सवाल था सो सब सुनना पड़ा।
मगर बिरयानी चुनाव में हिट रही। नेताजी जीतेंगे तो बिरयानी की दावत तो पक्की और अगर हार गए तो अंगूर की बेटी के साथ भी बिरयानी मौजूद होगी।