शनिवार, 18 जुलाई 2009

बलम अब नही जाएगा कलकत्ता

सिद्धार्थ कलहंस

बहुत मशहूर है वो कविता कि -- चंपा काले अक्षर नही चीन्हती।

और बलम को कलकत्ता चिट्ठी भेजने के नाम पर तुनक कर कहती है-- कलकत्ता पर बजर गिरे।

चंपा की दशकों पहले की चाह पूरी हो गयी। अब चंपा के बलम कमाने कलकत्ता, लुधियाना और मुंबई नही जा रहे।

हालात बदल गए हैं। उत्तर प्रदेश की मजदूरों की मंडिया सूनी हो रही हैं। सूबे के ईंट भट्ठों पर काम करने के लिए बंगाल के माल्दा जिले से मजदूर लाए जा रहे हैं। पंजाब हरियाणा में बेहतर मजदूरी दिलाने के लिए लोगों को ले जाने वाले ठेकेदार बेरोजगार हो गए हैं। पंजाब में एक एकड़ धान रोपने के लिए 2000 रुपए की खुली पेशकश भी भैय्या लोगों को नही लुभा रही है। भैय्या (पंजाब, हरियाणा और मुंबई में यूपी के लोगों का प्रचलित नाम) अब अपनी शर्तों पर काम करेंगे।दशकों से उत्तर प्रदेश का पूर्वी भाग और बिहार पंजाब, हरियाणा के किसानों और मुंबई के उद्योगों को मजदूर उपलब्ध कराता रहा है। सूबे के मजदूर धान और गेंहूं के सीजन में माल कमाने के लिए पंजाब और हरियाणा का रुख करते थे तो थोड़ा ज्यादा बाहर रहने का जोखिम उठाने वाले मायानगरी मुंबई की ओर जाते थे। मगर हालात बदल गए और परंपरा भी।आज उत्तर प्रदेश का मजदूर बाहर जाना तो दूर अपने गांव में भी दूसरे के खेत पर मजदूरी के लिए सहज उपलब्ध नही है।यह सारा बदलाव कई सालों में नही बस बीते तीन सालों की देन है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में रोजाना 30 रुपए पर खेतों में काम पर राजी होने वाला मजदूर अब 150 रुपए मांग रहा है और शहरों की मिलों में काम करने के एवज में यही कीमत अब 175 रुपए रोज से 200 रुपए हो गयी है।लखनऊ शहर में मोबाइल कंपनी के टावर लगाने का काम करने वाले ठेकेदार संजीव रतन सिंग का कहना है कि सूबें में मजदूरी मंहगी हो गयी है और नखरे ज्यादा। उनका कहना है कि बंगाल में नरेगा के तहत शायद काम कम मिल रहा है इसी लिए माल्दा और इस जैसे कई जिलों से मजदूर आ रहे हैं। सिंह का कहना है कि यूपी में मजदूरों के ठेकेदार अब बंगाल और उड़ीसा में कामगार तलाश रहे हैं।मजदूर नेता काजिम हुसैन का कहना है कि यह बदलाव सुखद है। वो कहते हैं कि मंहगायी लगातार बढ़ती रही पर मजदूरी नही। अब नरेगा के चलते मजदूर के पसीने की सही कीमत लगने लगी है। छह महीने पहले तक नरेगा को गरियाने वाली यूपी की मुखिया मायावती भी अब इसकी अहमियत समझ गयी हैं। आज सूबे के हर जिले में नरेगा हेल्पलाइन बना दी गयी है जहां कोई भी जॉबकार्ड न बनने, कम मजदूरी मिलने और काम न मिलने की शिकायत दर्ज करा सकता है।नरेगा ही नही, राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना, जवाहरलाल नेहरु अरबन रिनीवल मिशन जैसी कई योजनाओं ने न केवल रोजगार के रास्ते खोले हैं बलि्क मजदूरों का पलायन भी रोका है। लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रंबधन विभाग के डॉ राजीव सक्सेना का कहना है कि मंदी के दौर में निर्माण के काम ठप्प होने लगे थे तो केंद्र सरकार की इन योजनाओं ने गरीब तबके को बड़ा सहारा दिया। उनका कहना है कि आज न केवल मजदूरी बढ़ी है वरन मजदूर अपनी शर्तों पर काम भी करने लगा है।

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