रविवार, 1 मार्च 2009

भाई खोजो काले बंदर को

अब खेल काले बंदर का

सिद्धार्थ कलहंस


माडिया जगत के मेरे दोस्तों कल एक फिल्म देखने गया नाम थी दिल्ली 6. बेटे ईशान का कहना था कि पापा मश्कअली वाला गाना इसी में है। गाना सुना था और पुराना लखनउवा तो कबूतरों का शौक भी सो चला गया। अभिषेक बच्चन बढिया लड़का है। काफी अच्छा काम है उसका। भाई ज्यादा प्रस्तावना लिखने का मन नही। जो मैं कहना चाहता हूं सुन लो। फिल्म में एक काले बंदर का जिक्र है जिसने दिल्ली में आतंक मचा रखा है। दारु की फिक्र थी और जल्दी घर जाने की भी सो फिल्म मे मन कम लग रहा था। अचानक स्क्रीन पर आईबीएन 7 दिखा और एक काले बंदर का जिक्र। आंखे खोल कर बैठ गया। फिर तो सारी फिल्म काले बंदर के आगे पीछे। राकेश मेहरा एक मायनें में बेहतर फिल्मकार हैं। सुपर इंपोजकर फिल्म को ताकत वो देते हैं। मैंने अक्स देखी फिर रंग दे बसंती और अब दिल्ली 6। मेरे पुराने दोस्त आकाश वर्मा के पिता रवीन्द्र वर्मा ने एक बार उनकी तारीफ की। पता नही क्यों उन जैसा होना चाहा पर हो न सका। खैर उन फिर कभी बात होगी। अभी बात काले बंदर की। काला बंदर दिल्ली में आतंक मचा रहा था और आखिर में जैसा फिल्मों में होता है वही हुआ। नायक काले बंदर का लबादा पहन नायिका को जकड़ता है और फिर लबादा हटाता है। उधर पुरानी दिल्ली में काले बंदर को लेकर दंगा मचा है। कोई उसे हिंदु तो कोई मुसि्लम करार दे रहा है। है न रोचक बात। जानवर का गर धर्म हो तो क्या कहना सुअर मुसि्लम इलाके में जाए तो मार दिया जाए और गाय पर खरोंच लग जाए अपने लखनऊ के चौक इलाके में तो बम चल जाए। पर जानवर ता खमोश हैं। कोई जात नही धर्म नही। काले बंदर की भी कोई जात नही। अंत में फिल्मकार कहता है कि अपने अंदर का काले बंदर को पहचानो। मीडिया ने बनाया काले बंदर को। आज जब हम से कहा जा रहा है कि अपने अंदर के काले बंदर को पहचानो तो गिरेबान में झांकना पड़ रहा है।पत्रकारों एक बड़ी आसान बात कि हम कह दें कि साले ये टीवी वाले ये सब नाटक करते हैं पर जरा सोचें। कभी बाईलाइन के दबाव में कभी संपादक के जोर पर कितनी बार खुद काला बंदर बनाते हैं और हर बार खुद भी बनते हैं। टीवी तो आसमान से नही टपका है और वहां बड़े निर्णायक पदों पर वही लोग हैं जो हमारे बीच से गए हैं। हम प्रिंट मीडिया के लोग सबसे बड़े काले बंदर हैं जो समाज में खौफ भी भरते हैं और कौतूहलता भी।दोस्त मैं देश के बड़े अखबार में संवाददाता था और वहां जाने के बाद सबसे पहले मेरी एक खबर छपी पहले पन्ने पर आल इंडिया। खबर के लिए मैं भी काला बंदर बना और काले बंदर को बनाया भी। बता नही पा रहा हूं क्योकि अभी 40 का हूं और कई साल चाकरी करनी है। पर एक बात कि एक बकवास सी खबर आज भी मेरे नाम पर हर सर्च इंजन पर सबसे ज्यादा हिट के तौर पर मिलेगी। बड़ा खुश था मैं कि देखो देश विदेश के कितने लोग फोन कर रहे हैं खबर के बारे में। लंदन के एक चैनल ने तो इंटरव्यू तक ले डाला हमारा। मगर आज हम शमिर्दां हैं कि काला बंदर जिंदा है।कल ही मेरे बगल में एक बड़ी प्रेस वार्ता में मध्य प्रदेश के एक बड़े अखबार के साथी संवाददाता बैठे थे। एक सनसनी की बात बताने लगे। अचानक उनका गोरा सुंदर चेहरा मुझे काला लगने लगा। थोड़ी देर में वही काला चेहरा बंदर की शक्ल में बदल गया। मैं उठा जाकर अपने मित्र अंबरीष को फोन किया बात किसी और बिषय पर की कैसे भी काले बंदर से छुटकारा पाना था। मेरे ब्लागर दोस्तो आप मदद करो। जब ब्लाग बनाया तो संजीत भाई तुरंत मदद को आए पहली पोस्ट का लोगों नें खूब स्वागत किया तो दोस्तों अब बताओ। जहां जा रहा हूं हर कोई काला बंदर दिख रहा है। हद तो तब हो गयी जब कल शेव बनाते समय खुद की शक्ल जो भगवान की दया से सांवली सी है काली दिखने लगी और फिर एक बंदर भी दिखने लगा। डर के मारे अंदाज से शेव बना डाली। अब क्या करें भाई काला बंदर तो हर जगह है। नही जाने वाला है वो इस दुनिया से। मेरी गुजारिश है दोस्तों खोजो काले बंदर को मिटाओ नही उसको बस पिंजरें में डाल दो। पुरानी कहावता है कि आग का डर बना रहे इस लिए पानी का रहना जरुरी है। पर हमारे अंदर के काले बंदर को भगा दो भाई। बच्चों को न बताना डर जाएंगे।

2 टिप्‍पणियां:

  1. भैया इस दुनिया में हम सब को बाहर, इधर-उधर झांकने से फुर्सत मिलती नही तो अपने अंदर झांककर काले बंदर को तलाशने कि ज़हमत कौन उठाएगा ;)

    देहली-6 में छत्तीसगढ़ी ससुराल गोंदा फूल कैसा लगा ये तो लिक्खा ही नई जी आपने।

    एक निवेदन, पैराग्राफ जरुर छोड़ें।

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  2. i kept laughing while reading this blog, as i reminded discussions we used to have at paan shop outside our office.. very true whtever u hv written...sometimes, though, it may be difficult to tell in this express-fast world who is exploiting whom...at the end of the day, we all are victims of circumstances...isn't it??

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